भीमबैठका : पूर्वजों की धरती

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पूर्वजों की धरती-भीमबैठका के भ्रमण का अवसर हमें तब प्राप्त हुआ जब एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हम मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल गए। निकटतम भीमबैठका की गुफाओं तक पहुंचने के लिए हम दक्कन के विशाल हरे-भरे, चट्टानी मार्गों से निकले। मेरे पीछे, विंध्या पर्वत शृंखला की पृष्ठभूमि थी, मेरे समक्ष 500 गुफाएं फैली थीं जो प्राचीन रॉक-आर्ट या शैल चित्रकला के लिए विश्वविख्यात है। सात पहाडिय़ों पर विस्तृत भीमबैठका की गुफाओं की चट्टान-चित्रकला, पैलियोलिथिक (पूर्व पाषाण काल), सिोलिथिक (मध्य पाषाण काल) और नियोलिथिक (नवीन पाषाण काल) युगों में रची गई थी। भीमबैठका की प्रागिहासिक शैल-चित्रकला वाली गुफाओं की समरूपता आस्ट्रेलिया, कालाहारी रेगिस्तान और फ्रांस की ऐसी गुफाओं से प्राय: की जाती है परन्तु भीमबैठका गुफा समूह सर्वाधिक विशाल है। संसार में ऐसे स्थल असाधारण हैं और भारत में पाषाण युग-मानव के रहने के साक्षी हैं। कुछ पुरातत्व विभागकालियों के अनुसार कुछगुफाओं में मानव ने 1 लाख वर्ष पूर्व आश्रय लिया था। कुछ गुफाओं की निचली तल में चिकने पत्थरों के औजार पाए गए हैं जो 1 लाख बीस हजार वर्ष पूव के हैं और उस समय के मानवों के यहां रहने के अप्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गुफाओं की ओर चलते हुए यह विचार मन में उमड़े कि क्या यहां भीमबैठका की प्रागितिहासिक गुफाओं-शैलाश्रयों में होगी। इरेकेट्स और होमो सेपियंस का भी वास रहा होगा जो कि आधुनिक मानव के भी पूर्वज माने जाते हैं जो वानरों का खड़ा रूप था।

 

Goddess Vaishno’s rock temple from Pandavas time

पर्यटकों के लिए केवल कुछ गुफाएं खुली हैं जिनके भ्रमण पर जाने के पूर्व गाइड हमें विशेष गुफा की ओर ले गया जिसके ऊंचे पर्वत पर लाल झंडे फहरा रहे थे। गुपा के भीतर मां वैष्णों का अलौकिक मंदिर था जो हजारों वर्ष पूर्व पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय पर बनाया था क्योंकि मां उनकी कुल देवी थी। इस दर्शनीय स्थल का रख-रखाव बढिय़ा है। गुफा मंदिर के बाहर एक विशाल चट्टान है जिस पर से संपूर्ण घाटी का विहंगम दृश्य दिखता है। महाग्रंथ महाभारत के अनुसार अज्ञातवास में पांडव भीम अक्सर इस चट्टान पर बैठते थे और यह स्थल भीम की बैठक-भीमबैठका कहलाने लगा। मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्या पाषाण काल की चित्रकलाओं वाली गुफाओं और शैलाश्रयों का तब भी अस्तित्व था, जब यहां भीम बैठा करते थे? क्या उस युग से पूर्व इस स्थल का नाम कुछ और था?

गुफा-मंदिर से पुन: छोटी कार ड्राइव के पश्चात् हम मुख्य रॉक आर्ट गुफा आश्रय स्थल पर पहुंचे। हमारे समक्ष नीलम आकाश के नीचे वन और रहस्यमयी गुफा-समूह विस्तृत था। मुख्य द्वार के आरंभ पर एक मानव आकार की शिला पर धूप में चमचमाती हुई पीतल की प्लेट पर लिखा गया था कि यह भीमबैठका की प्राचीन गुफाओं और शैलाश्रयों का आरंभ है जो युनेस्को की हेरिटेज साइट है। यूनेस्को संसार भर की विशिष्ट, प्राचीन और मध्यकालीन स्थलों की देखरेख और रक्षा करने वाली यूनाइटिड नेशन की एक प्रमुख शाखा है। साथ ही में प्लेट पर राक-आर्ट (चट्टान चित्रकला) के विषय में भी संक्षिप्त पंक्तियां खुदी हुई थीं।

 

Outside the Bheembetka caves

भीमबैठका की गुफाओं के मुख्य मार्ग पर जाते हुए पत्थर की शिला पर पीतल की बड़ी प्लेट पर रोचक जानकारी दी गई थी कि भीमबैठका के शैलाश्रय विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित और संरक्षित हैं। भीमबैठका के शैलचित्रों की संख्या और गुणवत्ता मानव और प्रकृति के बीच निकटतम संबंधों को स्पष्ट करते हैं। शैलचित्रों में एक ओर शिकार तो दूसरी ओर संग्रहण-अर्थव्यतवस्था के संबंधों को दर्शाया गया है जो अब लुप्त हो रहे हैं परन्तु आसपास के स्थानीय आदिवासी ग्रामों में इनकी झलक आज भी विद्यमान है। भीमबैठका के इस प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थल का विशेष महत्व समझने के पश्चात् हमने बड़ी उत्सुकता से गुफा-मार्ग पर प्रवेश किया।

सभी गुफाएं प्राकृतिक वातावरण में वैसी ही हैं जैसी सदियों पूर्व थीं और उनमें कुछ भी कृत्रिम परिवर्तन नहीं किए गए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के मार्गदर्शक गाइड के साथ हम शैलाश्रय गुफाओं के अन्वेषण करने निकल पड़े, जिन पर उनकी क्रम संख्या बड़े आकार में सफेद पेंट से लिखी थी। गाइड ने हमारे ग्रुप को सावधान किया कि हमें नीचे बने ट्रैक पर ही रहना है अन्यथा हम भटक सकते हैं। फिर उसने हमें सचेत किया कि शैलाश्रय गहरे और अंधकार वाले हैं जिनमें हम प्रवेश न करें क्योंकि उनमें बिच्छू, सांप और चमगादड़ होते हैं।

हमने अपने आसपास की सेडिमेनटरी रॉक्स (अवसादी शैल) को ध्यानपूर्वक देखा जो एकदम मुलायम और सपाट है। युगों से खुली हवा, ऋतुओं और वर्षा के प्रभाव से चट्टानों और पत्थरों ने असाधारण आकार धारण कर लिए हैं। अति-समतल हैं और कहीं से भी खुरदरे या ऊबड़-खाबड़ नहीं हैं, साथ ही, शैलाश्रय विभिन्न आकारों और आकृतियों के हैं। इन दोनों तथ्यों का वैानिकों ने यह विश्लेषण किया है कि यह संपूर्ण क्षेत्र हजारों वर्ष पूर्व, समुद्र तल था और समुद्र के जल में डूबा हुआ था। गाइड के अनुसार ब0 हजार करोड़ साल पहले, ऐसी स्थिति थी। संपूर्ण विंध्याचल पर्वत शृंखला सागर तल में विलीन थी और अब उसकी ऊंचाई समुद्र तल से केवल 2000 फीट है। युग बीतते गए और प्राकृतिक प्रक्रिया से जल घटने लगा, फिर पूर्ण रूप से समुद्र तल उभर कर आया तो यह अति समतल और चिकनी चट्टानों वाले शैलाश्रय और गुफाएं उभरीं।

भीमबैठका की गुफाएं अनगिनत फोटोग्राफों और फिल्मकारों का रुचिकर विषय है। इन असाधारण नाम वाली शैलाश्रय-गुफाओं : सभा-गृह, जंतु-शैलाश्रय, टाइगर-जॉ, बोट-रॉक का भ्रमण मेरे जीवन का स्मरणीय अनुभव बना।

हमने अपने टूर का आरंभ शैलाश्रय नंबर 3, सभा-गृह या आडीटोरियम-रॉक-दोनों ओर से प्रकाशमय सुरंग के भीतर से निकलकर किया जिसकी च्तिरकलाएं या एनग्रेविंग्स लाखों वर्ष पुरानी हैं।

 

The site of discovery of the 6000 years old Skeleton

सुरंग के अंत में विशाल आकार और आकृति वाला शैलाश्रय किसी सभा-गृह जैसा दिखता है और उसकी दीवारों पर लाख वर्ष से ऊपर की चित्रकला है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे 2,00,000-5,00,000 बि.पी. का माना जाता है जिनमें शिकारी, हिरण, बाघ, गाय और विशेष आकार के मोर प्रदर्शित हैं। सभा-गृह में सर्वप्रथम हमने शैल-चित्रकला को देखा और चकित रह गए। सभा-गृह की दूसरी ओर, एक रेलिंग के पीछे 6000 वर्ष पूर्व का नर-कंकाल मिला था जो भोपाल के संग्रहालय में प्रदर्शित है।

सर्वप्रथम शैलाश्रय सभा-गृह की 2 लाख से 5 लाख वर्ष पुरानी चित्रकला देखकर हम चिन्हित मार्ग से बाहर आए तो टाइगर-जॉ शैलाश्रय देखा, जिसकी बनावट बाघ के चमड़े जैसी थी। यह शैलाशख्रय, ऊपर एक ऊंची चट्टान पर स्थित था और आदिमानव के लिए सुरक्षित स्थान रहा होगा। उस पर रुचिकर चित्रकलाएं थीं, जिसमें से लेपर्ड-हंटिंग (चीते का शिकार) प्रमुख थी।

गुफा-4 का उचित नाम था-जंतु-शैलाश्रय या जू-रॉक क्योंकि उसकी चट्टानों पर मध्य-पाषाण युग से मध्य कालीन यतुग की अनेक चित्रकलाएं थीं। एक दस हजार वर्ष पुराने चित्र में सूर्य, आकाश, शिकार करते आदि मानव के साथ-साथ हाथी, सांभर, हिरण, मोर, सांप और बाइसन दर्शाए गए थे। चित्र देखते हुए मैंने सोचा कि आदि-मानव की फुर्सत के शौक, आज के युग के मानव से अधिक भिन्न नहीं थे क्योंकि चट्टानों पर जो मानव के उल्लासजनक जीवन के दृश्य थे उसमें सामूहिक-नृत्य, पेय ग्रहण करना और संगीत-यंत्र बजाना सम्मिलित थे। अधिकतर चित्र लाल या सफेद रंगों के थे जिनके विषय में आगे जाकर चर्चा होगी।

बाद के युगों में बनाई गई चित्रकला में गाय जैसे पालतु पशु, हाथी की सवारी करता मानव भी दर्शाए गए हैं। मधुबनी और वारली-चित्रशैली से जंतु शैलाश्रय की चित्रकलाओं की अद्भुत समानता थी। सभी चित्र मनुष्य-जाति के विकास के सूचक थे।

गुफा-6 के शैलाश्रय में मध्य-पाषाण युग एवं ऐतिहासिक, दोनों प्रकार की सुंदर चित्रकारी थी जिसमें मुख्य रूप से मानव का सामूहिक-नृत्य और गुफा की छत पर बाइसन की आकृति ध्यान आकर्षित करती है। यहां भी विभिन्न युगों की चित्रकारी विद्यमान थी। गुफा-7 के शैलाश्रय में घोड़ों की, रेखागणित-प्रभावित चित्रकारी इस सिद्धांत की पुष्टि करती है कि 5000 वर्ष से पूर्व भी घोड़े अरब देशों से और अफगानिस्तान से भारत लाए गए।

 

Rock Cave Shelter shaped like Tiger’s Jaw

फिर हम गुफा-8 के आगे से निकले जिसे माडर्न नाम ‘डूप्लेक्स-फ्लैट’ पुकारा जाता है क्योंकि उसकी भीतर दो मंजिलें हैं जो गुफा में प्राकृतिक रूप से सदा से विद्यमान हैं। विशाल गुफा के नीचले फ्लोर और प्रथम फ्लोर पर एक समय में 25 मानव रहते थे। गाइड ने दूर से देखने और फोटो खींचने को कहा क्योंकि अंदर अनेक बिच्छू और चमगादड़ थे।

अब हम गुफा-9 के भीतर पहुंचे जिसकी चित्रकारी अन्य शैलाश्रयों की तुलना में कुछ भिन्न थी क्योंकि वह मध्यकालीन गुफा-साम्राज्य के समय में बनाई गई थी जिसे कि मानव की गुफा में निवास की अंतिम अवधि माना जाता है। इसके पश्चात् मानव गुफा-जीवन त्याग कर, घरों में रहने लगे थे। तभी चित्रकारी में पुष्प, सब्जियां और फूलदान दर्शाए गए थे।

आडिटोरियम-रॉक में दोनों ओर से प्रकाशमय सुरंग के भीतर से निकल कर अवलोकन किया जिसकी चित्रकलाएं या एनग्रेविंग्स वर्षों पुरानी हैं। सुरंग के अंत पर विशाल आकार और आकृति वाला शैलाश्रय किसी सभा-गृह जैसा दिखता है और उसकी दीवारों पर लाख वर्ष से ऊपर की चित्रकला है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे 2,00,000-5,00,000 बी.पी. का भी माना जाता है जिसमें शिकारी, हिरण, बाघ, गा और विशेष आकार के मोर प्रदर्शित हैं। सभा-गृह में सर्वप्रथम हमने शैल-चित्रकला को देखा और चकित रह गए। सभा-गृह के दूसरी ओर, एक रेलिंग के पीछे 6000 वर्ष पूर्व का नर-कंकाल मिला था जो भोपाल के संग्रहालय में प्रदर्शित है। अगले अंक में सभा-गृह के पश्चात् अन्य शैलाश्रयों का रोचक विवरण आप जान सकेंगे।

आकर्षक चित्रकलाओं से सुसज्जित गुफाएं एवं शैलाश्रय

Communal Dancing in Rock Art

अब तक पूर्व के तीन लेखों में आपने मध्य प्रदेश स्थित, हजारों वर्ष पुरानी भीमबैठका के शैलाश्रयों और गुफाओं के विषय में पढ़ा जो आदि मानव द्वारा रचित शैल-चित्रों को देखने के लिए विश्व भर में पयटकों को आकर्षित करती हैं।

पर्यटकों के लिए खुली सभी गुफाएं देखकर भी यह चाहत हुई कि यह एडवेंचर निरंतर चलता रहे और हम सब गुफाएं पुन: देखने लगे और फोटो खींचने लगे। ऐसा करते हुए भीमबैठका के प्रागैतिहासिक रॉक-आर्ट के विषय, काल और रंगों के बारे में बहुत सी जानकारी सामने आई।
शैलाश्रय और गुफाएं अनगिनत आकर्षक चित्रकलाओं से सुसज्जित थीं जो शैलाश्रय में रहने वाले मनुष्यों के जीवन के रूप को दर्शाती थीं-साधारण प्राचीन रीति-रिवाज, सामूहिक नृत्य, पेय-पदार्थ पीते हुए, जन्म और मृत्यु। सबी गुफाओं के भ्रमण के बाद हमें लगा कि उस समय के आदिमानव का रुचिकर विषय या आखेट-दृश्य और विभिन्न जानवर थे जिनकी चित्रकलाओं में प्रचुरता थी।

इन शैलाश्रयों में एक अद्भुत चित्रकला है, जो मध्य-पाषाण युग में बनाई गई थी-हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए एक आकृति है जिसे ‘शामन’ या नृत्य के देवता का नाम दिया गया। जब 1957 में डाक्टर वाकाकर ने इन गुफाओं को खोजा और इन पर विस्तृत शोध कार्य कर इन्हें विश्व प्रसिद्ध करवाया। डाक्टर वाकाकर ने संभवत: इसे मानवों के समूह का जादूगर माना है जो मुखौटा पहन, हाथ में त्रिशूल पकड़े प्रभु-शिव समान दिखता था।

अब गाइड बताने लगा कि भीमबैठका की रॉक-आर्ट या शैल-चित्रकला के अनेक रूप हैं, ध्यानपूर्वक देखने से सरलता से समझ आते हैं। प्रथम रूप में पेंटरो-गलिप्स हैं जो नक्काशी पर आधारित हैं, द्वितीय रूप के पिकटो-ग्राफ्स हैं जो शैल पर पेंटिंग हैं और तृतीय रूप में रॉक-ब्रूसिंग हैं जिनमें चट्टानों को तराश कर चित्र बनाया जाता है। पहले दो रूपों की भीमबैठका गुफाओं में प्रचुरता है।

गुफाओं में फैले अनोखे रॉक-आर्ट को कालों के आधार पर सात विशेष श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम वर्ग की चित्रकलाएं पूर्व पाषाणकाल( कुछ 30,000 वर्ष पूर्व) में बनाई गई हैं जिनमें अधिकतर लाल रंग के प्रयोग किए जानवरों के चित्र हैं।

द्वितीय वर्ग की चित्रकलाएं मध्य-पाषाण काल में बनाई गईं जिनमें उस काल की संस्कृति झलकती है जैसे भोजन एकत्रित करते मानव, औजार (भाले, तीखे डंडे, तीर-कमान), पक्षी, संगीत यंत्र, सामूहिक नृत्य और आखेट या शिकार। मध्य पाषाण काल की चित्रकलाओं की तुलना करते हुए हमने पाह्यया कि एक युग के बीतने पर भिन्न उपकरणों और औजारों को भिन्न-भिन्न रंगों से चित्रित किया गया था।

तृतीय वर्ग की पेंटिंग्स नवीन-पाषाण काल और कांस्य युग के बीच के समय की है जो परिवर्तन का युग था। जब तांबा या कांस्य और पत्थर, दोनों का उपयोग साथ-साथ होता था। मुझे यह वग महत्वपूर्ण लगा क्योंकि इन चित्रों में गुफाओं में वास करने वाले मनुष्यों का बाहर के कृषि-प्रधान जन-समुदायों से वस्तुओं और अन्न का आदान-प्रदान जाहिर होता है।

चौथे और पांचवें वर्ग की चित्रकलाएं वे थीं जो ऐतिहासिक युग के आरंभ में बनाई गई थीं जिनमें लाल रंग के साथ पीले और गहरे रंग का उपयोग किया गया था। इस वग की कई पेंटिंग्स ट्यूनिक समान वेश-भूषा में घुड़सवार भी दिखते हैं, साथ ही कुछ धार्मिक चिन्हों का भी चित्र है जैसे-वृक्ष पूजा, आकाश में रथ और यक्ष।

अंतिम दो वर्ग-छठे और सातवें वर्ग-के शैल चित्र, मध्यकालीन युग में बनाए गए, जैसे हमने गुफा 9 के सैलाश्रय में देखे थे जिनमें सुंदर रंगों का प्रयोग था जो सदियां बीतने पर ही ब्राइट दिखता था। इस वर्घ के चित्रों में नटराज और गणेश के चित्रण भी देखे जा सकते हैं।

भीमबैठका की प्रागैतिहासिक चित्रकारी
अंतिम प्रत्येक शैलाश्रय में आदिृ-मानव का वास था और उसकी दीवारों और छत पर अनोखी चित्रकलाएं हैं जो तब की जीवन शैली का स्पष्ट प्रतिबिंब हैं-माडर्न फोटोग्राफी के समान।

750 गुफाओं और शैलाश्रयों को अब तक खोदा गया है जिनमें से 560 पर रॉक-आर्ट या शैल चित्र प्रदर्शित हैं। हम सब ने तो केवल 12 गुफाएं ही देखीं तो आश्चर्यचकित हो गए। कुल मिलाकर, इस हजारों वर्ष पुराने, वीराने में कितना आर्ट छिपा है, इसकी परिकल्पना कर पाना भी असंभव है। 1888 के भारतीय पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में भीमबैठका का प्रथम उल्लेख पाया गया और वह भी बौद्ध धर्मस्थल के रूप में। ये बौद्धस्थल 3 बी.सी. के समय के हैं। मौर्य और संग-साम्राज्य के शिला-लेख भी गुफाओं की दीवारों पर पाए गए थे। शैलाश्रय के साथ-साथ कुछ बौद्ध-स्तूप भी खोजे गए। फिर 1957 में अपने मार्ग से भटक कर उज्जैन के डाक्टर वाकाकर ने संयोगवश, भीमबैठका का लाखों वर्ष पुराने रहस्य का पर्दा संसार के लिए खोला। भीमबैठका के शैलाश्रयों की दीवारों और फर्श, संसार के सर्वाधिक प्राचीन मान ेजाते हैं।

रहस्यमयी गुफाओं को देखते हुए 12वीं शताब्दी के विद्वान राजा भोजपाल का स्मरण हो आया जिन्हें अक्सर वैरावती नदी में नौका-विहार करके भीमबैठका आना बहुत पसंद था। उन्होंने विज्ञान, भवन निर्माण कला और आयुर्वेद पर 84 पुस्तकें लिखीं और भीमबैठका उनके लिए आकर्षण का केन्द्र बना रहा।

रंग और ब्रश

Red colour from Haematite in Earth used for Rock Art

भीमबैठका की प्रागैतिहासिक चित्रकारी देखकर हमारा ध्यान रंगों और ब्रशों की कमी को दूर कर, आदि मानव की रचनात्मकता पर जाता है। पाषाण-युग के मानव का ज्ञआन यहां तक था कि वह स्थानीय लाल रंग का उपयोग करते थे जो मिट्टी में मिला हेमालाइट या आयरन-ऑक्साइड था, जो लोहे का रूप है। उसे मैगनीज, नरम लाल पत्थर और लकड़ी से बना कोयला या चारकोल के साथ आदि-मानव चित्रकारी करते थे। आश्चर्यजनक तत्य यह ह कि लाल और सफेद रंग (कैल्शियम) का रॉक-आर्ट हजारों वर्षों के बाद भी धुंधला नहीं पड़ा है, चाहे एक ही चट्टान पर अलग-अलग युगों में अलग-अलग मुुष्य ने एक के ऊपर दूसरी, फिर तीसरी, पुन: चित्रकारी की।

चिडिय़ों की ‘ड्रापिंग’ से पौधों के लेटेक्स से और जिप्सम से सफेद पिगमेंट तैयार किया जाता था। बाद के युगों की चित्रकारी में कांस्य या पीतल से हर रंग अवतरित किया जाता था। पाषाण काल का आदि मानव यह जानता था कि पारदर्शी या पतले रंग को बनाने के लिए पानी का प्रयोग करना है और गाढ़ा नीला रंग के लिए पिगमेंट को तेल में घोला जाता था। रंगों के लिए जानवर की चर्बी, पत्तों, सब्जियों और जड़ों को पीसकर रंग अवतरित किए जाते थे। रंगों को खून, वृक्षों की गोंद और पत्थरों के सेप (पौधों के रस) जैसे जोडऩे वाले पदार्थों में खोल कर पक्का रंग बनाया जाता था। फिर चित्रों को हाथ की अंगुली से बनाया जाता था। पतली जड़ वाले पौधे, डंडियों और चबाई हुई डंडियों से ब्रश समान कार्य किया जाता था। जानवरों के बालों के ब्रश का आविष्कार तो बहुत बाद के समय में हुआ।

 

Family photograph at Bheembetka

गाइड ने आगे बताया कि शैल की तह पर आक्साइड की परत होने से पंटिंग्स का रंग ज्यों का त्यों है। कुछ चित्रकलाएं, एक के ऊपर एक बनाी गई थीं और एक स्थान पर तो 15 बार ऐसा ही किया गया था, पर यह समझ में नहीं आया कि बाकी गुफा की दीवारें खाली थीं परंतु एक ही शैल पर हर सदी में नवीन रॉक-आर्ट क्यों बनाया गया। गुफा और शैलाश्रयों की भीतरी दीवारों पर चित्रकला नई सी दिखती है परंतु बाहरी दीवारों पर उतनी डार्क नहीं है। वर्षा-जल से भी चित्रकला खराब हो रही है।

 

 

 

इस प्रकार भीम बैठका का रहस्यमयी गुफाओं की यात्रा का अंत हुआ परंतु उनका सम्मोहनी जादू सा आकर्षण यादों में बना रहेगा।